अनामिका के साहित्य की विशेषताएँ

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प्रीति यादव, धनेश कुमार मीणा

Abstract

समकालीन कविताओं की पृष्टभूमि ही यथार्थवादी रही है। समाज के वास्तविकताओं को लेकर चलने वाली कविता ही समकालीन कविता की श्रेणी में आती है। अपने आस-पास के परिवेश को लेकर चलना का काम ही समकालीन कविता की आधार बिन्दु है। पूर्ण रूप से आँखों देखी सच्ची तस्वीर ही इस समय की रचनाओं का आधार बिन्दु रहा है। ये रचनाएं आज के परिवेश, समय और समाज से जुड़ी हुई हैं। अपने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि परिस्थितियों की कहानी का स्पष्ट प्रमाण है विसंगतियाँ  आज कल की सामाजिक परिस्थितियाँ जटिल से जटिल बनती जा रही है। समाज में हर तरफ असुरक्षा, अजनबीपन, एकाकीपन, अस्तित्व पर खतरा, राजनीतिक विसंगतियाँ आदि परिवेश ने हमारे सामने एक जटिल स्थिति पैदा कर दिया है। मूल्य संकट भी भ्रष्ट परिस्थितियों के सामने एक नए रूप में, एक नए प्रश्न के साथ खड़ी हैं जो आदर्शों की दीवारों को गिरा दे रही हैं। समकालीन रचनाएँ ही इन्हीं अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद की हुई है। आज का समाज अर्थ को ही मुख्य मानकर चलता है। समकालीन रचनाकार समाज की अनीति के साथ ही अच्छी बातों को भी जनता के सामने लाने का काम करते हैं। समकालीन रचनाकार समाज के मानवीय चेतना पैदा करने का काम करते हैं बिना किसी स्वार्थ और स्वहित के। समकालीन कविता उत्तर आधुनिक विसंगतियों, स्त्री विमर्श, दलित, आदिवासी विमर्श, आदिवासी विमर्श, राजनैतिक विमर्श, वृद्ध विमर्श, बच्चा विमर्श, परिस्थिति विमर्श, सांप्रदायिक विमर्श, मीडिया विमर्श आदि प्रवृतियों के साथ गोचर होती हैं। अनामिका की गणना समकालीन साहित्यकारों के जिस श्रेणी में किया जाता है, वह श्रेणी स्त्रीवाद की प्रमुख वाणी है, जो मीरा, महादेवी वर्मा जैसी रचनाकारों की परंपरा को पूरा करती हुई, अपने ठोस प्रमाण के साथ एक अलग दर्ज कायम करती है। अनामिका की रचनाएं धर्मदर्शन, पौराणिक नीति तथा मानव चिंतन के परिणाम स्वरुप व्यक्त हुई हैं। इनमें सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक अनेक परिस्थितियों का उद्भव होता हुआ दिखाई देता है।

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